Savitribai Phule Biography in Hindi | भारत की पहली महिला टीचर

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Savitribai Phule Biography in Hindi आज हम बात करेंगे , भारत की पहली महिला शिक्षक जिन्होंने अन्याय के खिलाफ खड़ा होना सिखाया। अपने पति के सहयोग से उन्होंने कई विद्यालयो का निर्माड़ किया। उनका मानना था, कि शिक्षा ही गरीबी को मिटा सकती है, इसलिए उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा दिया और समाज में फैली अफवाओं, रंग रूप और भेद भाव को ख़त्म करने का प्रण लिया। तो आये जानते है, एक समाजसेवी सावित्रीबाई फूले के जीवन के बारे में।

कौन थी सावित्रीबाई फुले ? | Who was Savitribai Phule?

सावित्रीबाई फुले एक भारतीय शिक्षक, समाजसेवी,और महाराष्ट्र की कवियित्री थीं। इनका जन्म 3 जनवरी 1831 महाराष्ट्र में हुआ था। उन्हें भारत के नारीवादी आंदोलन की अग्रणी माना जाता है। वह भारत की पहली महिला टीचर थी, जिन्होंने लड़कियों को शिक्षा का महत्व समझाया। सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ भारत में महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने जाति, भेज-भाव के आधार पर लोगों का अनुचित व्यवहार को खत्म करने के लिए काम किया। 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई फुले ने अंतिम सांस ली।

Savitribai Phule Biography in Hindi | सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय

name/नामसावित्रीबाई फुले
know for/जानी जातीभारत की पहली महिला टीचर के रूप में
DOB/जन्म तिथि3 जनवरी 1831
birthplace/जन्म स्थानमहाराष्ट्र में
work/कामशिक्षक, समाजसेवी
family/परिवारपिता – खांडोजी नवसे पाटिल
माता – लक्ष्मीबाई
husband /पतिपति – ज्योतिराव फुले
religion/धर्महिन्दू
death/निधन 10 मार्च 1897
age ( at the time of death) आयु66 वर्ष
nationality/राष्ट्रीयताभारतीय
Savitribai Phule Biography in Hindi

Savitribai Phule story in Hindi

एक निडर महिला या यु कहे आत्मविश्वाश से भरी सरीवित्री बाई महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में एक दलित परिवार में 3 जनवरी 1831 महाराष्ट्र में जन्‍मी थी। परिवार में सावित्रीबाई के पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मी फुले था। शुरू से समाज के प्रति कुछ करने की जिज्ञासा उन्हें आगे जाकर शिक्षक होने के साथ साथ भारत के नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता घोषित हुई। उन्होंने बालिकाओं तथा महिलाओं को उनका शिक्षा का हक़ दिलाया, लेकिन इस सब के बीच यह इतना आसान नहीं था, क्योकि बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए समाज का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। और कई बार तो ऐसा हुआ की उनका हक़ के खातिर पत्थर की चोट भी झेलनी पड़ी।

सावित्रीबाई फुले का विवाह और शिक्षा में योगदान

पहले समय में जब समाज के लोग महिलाओं का विवाह छोटी सी उम्र में ही करा देते थे, क्योकि उनका मानना था, की विवाह जितना जल्दी हो जाये उतना ही अच्छा है, कुछ ऐसा ही हुआ सावित्रीबाई फुले के साथ उनका विवाह भी बहुत ही छोटी उम्र में हो गया था। उनका विवाह महज नौ साल की उम्र में वर्ष 1840 में ज्योतिराव फुले के साथ हुआ। शादी के बाद वह जल्द ही अपने पति के साथ पुणे आ गईं। शिक्षा के प्रति उनका लगाव कुछ अलग ही था। विवाह के समय वह पढ़ी-लिखी तो नहीं थीं, लेकिन पढ़ाई में उनका लगाव देखकर उनके पति ने उन्हें आगे पढ़ना और लिखना सिखाया। सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में शिक्षक बनने का प्रशिक्षण लिया और एक योग्य शिक्षिका बनीं।

भारत की आजादी से पहले महिलाओं की गिनती न के बराबर थी, केवल पुरुष को आगे रखा जाता तथा दर्जा दिया जाता था। अगर बात करे शिक्षा की तो उन्हें शिक्षा का अधिकार भी नहीं था, शिक्षा तो दूर उन्हें स्कूल जाने पर रोक थी। 18वीं सदी की बात करें तो उस समय महिलाओं का स्कूल जाना भी किसी पाप की तरह समझा जाता था। ऐसे में सावित्रीबाई जब स्कूल पढ़ने जाती थीं तो लोग उन पर पत्थर फेंकते थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और स्त्रिओं को उनका हक़ दिला कर ही मानी। भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई ने अपने पति समाजसेवी महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर 1848 में उन्होंने बालिकाओं के लिए स्कूल की स्थापना की थी।

Savitribai Phule history in Hindi | सावित्रीबाई फुले का इतिहास

आजादी से पहले जब देश में समाज के अंदर जाति, भेद-भाव, छुआ-छूत, बाल-विवाह, सतीप्रथा और विधवा-विवाह का चलन था। तब सावित्रीबाई फुले इन सब से काफी परेशान थी, साथ ही उनका जीवन बेहद ही मुश्किलों भरा था। दलित महिलाओं छुआछूत तथा अन्य कामो पर रोक के खिलाफ सावित्रीबाई फुले ने आवाज उठाई, लेकिन इसके बदले उन्हें पत्थर की चोट झेलनी पड़ी। लोगो ने उनका विरोध स्कूल जाते समय भी किया थीं, उनके विरोधी उन्हें पत्थर मारते और उनपर गंदगी फेंकते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी हुई साड़ी बदल लेती। महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोल पूरे देश में शिक्षा की नई शुरुआत की।

यहाँ से सावित्रीबाई ने महिलाओं को शिक्षा पर उनका हक़ दिलाया लेकिन देश में विधवाओं की दुर्दशा एक बड़ी परेशानी थी, सावित्रीबाई इस पर गौर किया और 1854 में उन्होंने विधवाओं के लिए एक आश्रय खोला। एक रहने का नया मुकाम मिला। कुछ सालो के बाद 1864 में इसे एक बड़े संस्था में बदलने में सफल रहीं। उनके इस आश्रय गृह में निराश्रित महिलाओं, विधवाओं और उन बाल बहुओं को जगह मिलने लगी, जिनको उनके परिवार वालों ने छोड़ दिया था। सावित्रीबाई उन सभी विधवाओं को पढ़ाती लिखाती तथा शिक्षित करती।

Savitribai Phule death in hindi | प्‍लेग से हुआ निधन

सावित्रीबाई फुले के पति ज्योतिराव का जब निधन हुआ तो उस समय उनपर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो, पति के मृत्यु के बाद उन्होंने अपने पति का अंतिम संस्कार किया। पति की कमी तो खाल रही लेकिन उन्होंने अपने आप को सभाला लेकिन करीब सात साल बाद जब 1897 में पूरे महाराष्ट्र में प्लेग की बीमारी फैली तो वे लोगों की मदद करने के इरादे से खुद भी प्लेग की शिकार हो गई और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया।

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नोट– यह संपूर्ण बायोग्राफी का क्रेडिट हम सावित्रीबाई फुले को देते हैं, क्योंकि ये पूरी जीवनी उन्हीं के जीवन पर आधारित है और उन्हीं के जीवन से ली गई है। उम्मीद करते हैं यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। हमें कमेंट करके बताइयेगा कि आपको यह आर्टिकल कैसा लगा?