Maharaja Surajmal Biography in Hindi – family, wife, history, bio, story, work, DOB, death, and some FAQ (महाराजा सूरजमल की जीवनी हिंदी में – परिवार, पत्नी, इतिहास, जीवनी, कहानी, कार्य, जन्म तिथि, मृत्यु, और कुछ सामान्य प्रश्न)
कौन थे, राजा सूरजमल? | Who was Raja Surajmal?
महाराजा सूजान सिंह जिन्हे सूरजमल के नाम से जाना जाता है। यह राजस्थान के भरतपुर के हिन्दू जाट राजा थे, जिनका जन्म 13 फरवरी 1707 को भरतपुर में हुआ था। क्षत्रिय जाट महाराजा सूरजमल का राजयभिषेक 22 मई 1755 को हुआ, और 1755 से 1763 तक शासन किया। महाराजा सूरजमल का निधन 25 दिसम्बर 1763 को भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ था।
Maharaja Surajmal information in Hindi | महाराजा सूरजमल की जानकारी हिंदी में
point (बिंदु) | information (जानकारी) |
name/ नाम | राजा सूरजमल |
know for/जाने जाते | भरतपुर के हिन्दू जाट राजा |
DOB/जन्म तिथि | 13 फरवरी 1707 |
birthplace/जन्म स्थान | भरतपुर, राजस्थान |
father/पिता | बदन सिंह |
mother/माँ | महारानी देवकी |
wife/पत्नी | कल्याणी रानी रानी हंसिया रानी खाट्टू रानी गौरी गंगा रानी |
children’s/बच्चे | जवाहर सिंह नाहर सिंह रतन सिंह नवल सिंह रंजीत सिंह |
coronation/राज्याभिषेक | 22 मई 1755 |
term of office/कार्यालय की अवधि | 1755 से 1763 |
household/घरेलू | सिनसिनवार जाट |
religion/धर्म | हिन्दू जाट |
death/मृत्यु | 25 दिसम्बर 1763 |
deathplace/मृत्यु स्थान | दिल्ली |
nationality/राष्ट्रीयता | भारतीय |
Maharaja Surajmal story in Hindi | महाराजा सूरजमल की कहानी
बात 1658- से 3 मार्च 1707 की है, जब दिल्ली की सत्ता पर मुगल बादशाह औरंगजेब की हुकूमत कायम हो चुकी थी, औरंगजेब के काल में खजाने को बढ़ाने के लिए किसानों पर भारी कर लगा दिए गए, जब किसानों ने कर देने से इनकार किया तब उनसे जबरदस्ती कर वसूला जाने लगा!
तभी ब्रजभूमि के किसानों ने गोकुला जाट के नेतृत्व में किसी भी कीमत पर मुगलिया सल्तनत को कर देने से इनकार कर दिया, दिल्ली के तत्व को अस्वीकार करने पर औरंगजेब ने गोकुला जाट को कैद करने का निर्णय लिया और अपनी सेना के साथ ब्रजभूमि पर चढ़ाई कर दी!
लेकिन अपनी सेना के साथ उन्हें पराजित करने में औरंगजेब नाकामयाब रहा, उसने कई बार अपनी सेना के साथ गोकुला जाट पर आक्रमण किया परंतु हमेशा उसने मुंह की खाई, लेकिन सन 1769 में लिप्त का युद्ध हुआ, जिसमें औरंगजेब और जाटों के बीच बहुत बड़ा संग्राम हुआ था, परंतु इस बार इस युद्ध के दौरान मुगल शासकों ने गोकुल जाटों को बंदी बना लिया और उन्हें आगरा ले आया। इन्हें आगरा के बीच चौराहे पर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया गया, इस घटना के बाद ब्रजभूमि पर किसानों का सैलाब उमड़ पड़ा!
Maharaja Surajmal biogaphy in Hindi | महाराजा सूरजमल एक जाट राजा
मुगलों से हारने के बाद बृजवासी किसानों का नया सरदार राजाराम सिनसिनवार को चुना गया, जो गोकुला जाट के पुत्र थे और उन्होंने 1670 से लेकर 1688 तक वहां किसानो के हित के लिए कार्य किए। सरदार बनने के बाद राजाराम सिनसिनवार ने अपनी सेना को इकट्ठा किया और 1681 में आगरा के निकट सिकंदरा पर आक्रमण करके अकबर के किले को लूटा और अपने पिता गोकुला जाट का बदला लिया। अकबर के मकबरे को लूटने के साथ-साथ जाटों ने उनके सभी खजाने धन दौलत को अपने कब्जे में ले लिया, इसके साथ ही जाटों का रुतबा और अधिक बढ़ने लगा!
बदलते दौर में राजा राम सिनसिनवार के पुत्र बदन सिंह ने ब्रज के एक बड़े इलाके पर अपना दबदबा कायम कर लिया जिन्होंने 1722 से 1755 तक राज्य किया!
इसके बाद जन्म हुआ जाटों के एक नायाब सितारे का, जिन्होंने अपने शौर्य के बल से भरतपुर में नए साम्राज्य का निर्माण किया, जिसका नाम था सूरजमल, सूरजमल बचपन से ही वीर बुद्धिमान और थोड़े गुस्सैल स्वभाव के थे। बहुत छोटी सी उम्र में ही सूरजमल ने मेवात के मेवों पर आक्रमण करके वहां कब्जा कर लिया। 1732 में पिता के आदेश से सूरजमल ने दीप के सोगरिया पर आक्रमण करके दीप के एक बड़े इलाके को जीत लिया। इतनी बड़ी जीत के बाद सूरजमल ने लोहागढ़ में एक बहुत बड़े किले का निर्माण करवाया, वहां सूरजमल को राजा का सिंहासन दिया गया और उनका राज्याभिषेक भी किया गया!
Maharaja Surajmal history in Hindi | महाराजा सूरजमल का इतिहास
यह वही सूरजमल है, जिन्होंने दिल्ली के बादशाहो को दिल्ली में 1 महीने तक कैद कर दिया था। जाटों के अफलातून के नाम से मशहूर सूरजमल ने दिल्ली के अकूत खजाने को अपने कब्जे में ले लिया, बागड़ी की लड़ाई में 7 सेनाओं को एक साथ पराजित करके उन्होंने अपनी धाक कायम कर दी, सूरजमल ब्रिज के पहले शासक थे, जिन्होंने मुगलों को अपने सामने घुटने टिकबाये थे, और अपनी शर्तें मानने पर मजबूर कर दिया था। पानीपत युद्ध के बाद मराठों की सहायता के लिए उन्होंने अपने खजाने के दरवाजे खोल दिए थे, ऐसे वीर थे जिनकी सत्ता में वहां के लोगों के ऐसो आराम को चार चांद लग गए।
भरतपुर के मैदानों से लेकर गंगा की घाटी तक और मेवात रोहतक से लेकर चंबल की धाराओं तक पूरे साम्राज्य पर महाराजा सूरजमल का ही शासन था। वे दोनों हाथों में तलवार लेकर दुश्मनों का काल बनकर उन पर टूट पड़ते थे, ब्रिज के हिंदुओं का गुमान थे। वह 80 युद्धों के विजेता भी थे. इसी कारण से उन्हें एक अजय योद्धा माना जाता है!
महाराजा सूरजमल का संपूर्ण इतिहास साल 1743 में जयपुर के गजपति महाराज जय सिंह के निधन के बाद उनके दो पुत्रों ईश्वर सिंह और माधव सिंह के बीच राजगद्दी को लेकर युद्ध छिड़ गया, राजा माधव सिंह की माता मेवाड़ की राजकुमारी थी, जिसके चलते मेवाड़ जोधपुर बूंदी कोटा मराठों ने संयुक्त रूप से माधव सिंह को जयपुर का महाराज स्वीकार कर लिया, जबकि भरतपुर के महाराज सूरजमल ने अपने जिगरी मित्र जय सिंह को दीए वचन के लिए राजपूत परंपरा अनुसार बड़े पुत्र ईश्वरी सिंह को गद्दी पर बिठाने का निश्चय किया।
इसी के परिणाम स्वरूप साल 1743 को बागड़ी के मैदानों में काल के सभी विशाल हिंदू आपस में भिड़ गए, युद्ध के मैदान में महाराजा सूरजमल ने अपना खूब शौर्य दिखाया। उनकी अच्छी रणनीति और शौर्य ने युद्ध का मुंह अपनी तरफ मोड़ लिया, महाराजा सूरजमल को दोनों हाथों में तलवार लेते लड़ते देख तभी राजपूत योद्धाओं ने उनका परिचय पूछा तभी मैदान में एक मदमस्त दहाड़ सुनाई दी;-
“नहीं सही जाटनी ने व्यर्थ प्रसव की पीर!
जब जन्मा उसके गर्व से सूरजमल सा वीर”!!
सूरजमल की मुगलों पर इस प्रचंड जीत
इस युद्ध के बाद से संपूर्ण उत्तर भारत में महाराज सूरजमल के नाम का डंका बजने लगा, महाराज ईश्वर सिंह का जयपुर की गद्दी पर राजतिलक करवा कर महाराज सूरजमल भरतपुर की तरफ निकले। महाराजा सूरजमल के जयकारों से गूंज रही थी, लोगों को ब्रज के चमकते सितारे में अपना एक हिंदू योद्धा नजर आने लगा, इस भव्य जीत के बाद महाराजा सूरजमल ने अपने राज्य विस्तार के लिए एक बहुत बड़ी सेना संगठित करते हुए भयानक युद्धों का शंखनाद किया। उन्होंने ब्रजभूमि से मुगलों का नामोनिशान मिटाने के लिए अपने सभी योद्धाओं के साथ कसम खाई!
जल्द ही महाराजा सूरजमल ले रेवाड़ी, नीमराना, मथुरा, मेवात, गुरुग्राम की किलो को फतह करके अपने राज्य की सीमाओं को दिल्ली के दरवाजे तक मजबूत कर दिया, इस समय दिल्ली की गद्दी पर मुगल बादशाह अहमद शाह बहादुर की हुकूमत थी। अहमद शाह ने महाराजा सूरजमल की इस बढ़ती ताकत का जवाब दिया और अपने वजीर मीर बक्शी के नेतृत्व में विशाल फौज को सूरजमल को काबू करने के लिए भेजा।
23 दिसंबर सन 1749 को मीर बक्शी अपनी विशाल मुगल सेना के साथ जाटों के इलाके में घुस गया, मीर बक्शी मेवात को लूट कर आगे बढ़ा और नीमराना के किले पर अधिकार कर लिया, जीत के गुमान में मीर बक्शी अपनी सेना के साथ सराय के निकट आदम का जल्द ही महाराजा सूरजमल ने भी अपनी तलवार कसली। यह दिन हिंदुओं का नववर्ष था. महाराजा सूरजमल ने मां केला भवानी की पूजा करके अपने सेनापतियों को युद्ध का मोर्चा संभालने के लिए भेजा महाराजा के सरदारों ने आगे बढ़ रही मुगल मुगल सेना के 2 सेनापतियों को मार दिया, तभी महाराजा सूरजमल अपनी सेना के साथ मैदान में उतर गए!
देखते ही देखते मीर बक्शी की विशाल फौज को चारों तरफ से घेर लिया। मीर बक्शी की संपूर्ण सेना अब सूरजमल के वश में थी, 3 दिन तक महाराजा ने बक्शी को घेरे रखा, अंत में उसने घुटने टेक दिए और जाटों के इलाके खाली करने के साथ हर्जाना देने का भी वचन दिया। सूरजमल की मुगलों पर इस प्रचंड जीत की खबर संपूर्ण राजपूताने में फैल गई, सर्वत्र सूरजमल के नाम का बढ़ने लगा क्योंकि सूरजमल ने दिल्ली के तख्त को झुका दिया था।
अपने मित्र की मदद
इसी समय दिल्ली के बादशाह अहमद शाह ने अपने वजीर सफदरगंज को पद से हटाकर सभी जागीरे जप्त कर ली, सफदरगंज ने अपने एहसान फरामोश बादशाह को सबक सिखाने के लिए अपने अजीज मित्र सूरजमल से सहायता की गुहार लगाई। मित्र की पुकार पर 1753 में महाराजा सूरजमल ने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी और दिल्ली के नवाब गज्जू दिन की सेना पर प्रचंड आंधी के समान टूट पड़ी सूरजमल के प्रकोप से बचने के लिए गज्जू दिन युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गया!
“छात्र धर्म की धरती वीर जना करती है!
तलवार हो सूरजमल सी वह दिल्ली फतेह करती है!!”
9 मई से लेकर 4 जून तक जाटों ने दिल्ली में अपनी मनमर्जी चलाई, 16 मई को तो उन्होंने वहां खूंखार तरीके से उधम मचाया, दिल्ली की जर्जर बादशाहत कैद हो गई। किसी में भी सूरजमल की सेना से टकराने की ताकत नहीं रही, इस दिन को इतिहास में दिल्ली विजय” के नाम से जाना जाता है, अंत में खान सफदरगंज को अवध और इलाहाबाद की जागीर वापस लौटा दी गई, तब जाकर सूरजमल का क्रोध शांत हुआ!
दिल्ली की हार का बदला लेने के लिए नवाब गाजी उद्दीन ने दक्षिण के वीर मराठा को राजा सूरजमल के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया था, उसने मराठा सरदार मल्हार राव होलकर को सूरजमल पर आक्रमण करने के लिए न्योता दिया, जिसके परिणाम स्वरूप मल्हारराव को अपनी सेना के साथ कुम्हेर के किले पर चढ़ाई कर दी, तभी कुम्हेर के किले पर वहां के दोषियों ने तोप चला दी, जिससे मल्हारराव के वीर पुत्र खंडेराव शहीद हो गए, अपने पुत्र की मृत्यु की शोक की आग में मल्हार राव गुस्से से तक उठे उन्होंने अपनी सेना को आगे बढ़ने का उपदेश दिया, तभी सूरजमल की रानी हंशा देवी ने जयाजीराव सिंधिया को पत्र भेजा, इस पत्र के बाद मराठा और जाटों में मित्रता स्वरूप संधि हो गई। तय यह हुआ कि हिंदू राज्य आगे साथ मिलकर रहेंगे, आपस में कोई टकराव नहीं बनाएंगे!
मुगल साम्राज्य पर महाराजा सूरजमल का दबदबा
भारत की स्थितियां काफी बदल चुकी थी कोई समय क्रूर और मजबूत कहां जाने वाला मुगल साम्राज्य इस समय काफी कमजोर पड़ चुका था दिल्ली के राज्यपाल मुगल बादशाह आलमगीर द्वितीय की हुकूमत थी इधर दक्षिण में वीर मराठा ऐसी आंधी चलाई. “अटक से कटक तक भगवा लहरा दिया!”
दिल्ली के बादशाह हो पर भी मराठा का हुक्म चलने लगा, अब मुगल शासक भी मराठा से भयभीत रहने लगे मराठा साम्राज्य इस दौर में भारत की एक बहुत बड़ी ताकत बनकर उभरा:
इसी समय काबुल का बादशाह अहमद शाह अफगानी ने दिल्ली पर भयंकर आक्रमण करके दिल्ली को जीत लिया इस तरफ मराठा उन्हें पेशवा महाशिव राव के नेतृत्व में सेना को बादशाह अहमद शाह अफ़गानी को खदेड़ने के लिए भेजा, राव ने जल्द ही जवाबी हमला करते हुए दिल्ली को जीतकर केसरिया ध्वज लहरा दिया तभी, राव ने दूसरे हिंदी राज्य अतिरिक्त सैनिक सहायता की मांग की, राव की एक पुकार पर भरतपुर के महाराजा सूरजमल अपनी संपूर्ण सेना के साथ मदद को पहुंच गए, उन्होंने राव को तन मन धन से मदद करने का वचन दिया, परंतु युद्ध से पहले ही भाऊसाहेब और महाराजा सूरजमल के बीच में मतभेद हो गया जिसके परिणाम स्वरुप महाराजा सूरजमल अपनी सेना लेकर वापस भरतपुर लौट आए!
पानीपत का युद्ध और महाराजा सूरजमल
इसके साथ सन 1761 को पानीपत का दूसरा युद्ध लड़ा गया, और पानीपत के मैदानों में भयंकर युद्ध हुआ, अत्यंत विशाल सेना जिसमें मुगल सेना भी शामिल थी, दूसरी तरफ अकेले मराठी, दुर्भाग्य से युद्ध में मराठी की पराजय हुई। इस युद्ध के बाद हारे हुए मराठा वीरों के लिए महाराजा सूरजमल ने अपने किले के द्वार खोल दिए, घायल मराठा सैनिकों की मदद के लिए महाराजा सूरजमल ने अपने खजाने से 10 लाख रुपए की सहायता की मराठों की दवा दवाई खाने का पूरा इंतजाम महाराजा सूरजमल ने करवाया!
इधर पानीपत में अफगान और मुगलों की जीत जरूर हुई, पर मराठों ने उनकी कमर तोड़ दी थी, तभी महाराजा सूरजमल ने अपनी सेना तैयार करके आगरा को फतह कर लिया। आगरा के किले को जीतने के बाद महाराजा सूरजमल ने हरियाणा के बलूचीओ पर धाबा बोलकर वहा के नवाब को कैद कर लिया, हरियाणा के प्रमुख नगर को जीतकर अपने पुत्र जवाहर सिंह को वहां का सरदार नियुक्त कर दिया, सूरजमल मुगलो पर प्रकोप बन चुके थे आगरा से लेकर दिल्ली दरवाजे तक सूरजमल के नाम की तूती बोलने लगी, दिल्ली के रोहिल्ला सरदार नवीजोदुला ने सूरजमल के राज्य की सीमाओं को मानने से इनकार कर दिया, इसके बाद एक बार फिर महाराजा सूरजमल ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया, नवी जो दुल्ला को अहमद शाह अब्दाली का पूरा समर्थन था, सूरजमल के दिल्ली खोज की खबर सुनकर अहमद शाह अब्दाली से मदद मांगी!
यहां आक्रमण से पहले दिल्ली के चारों ओर के दरवाजे बंद कर दिए गए, इधर महाराजा सूरजमल के एक आदेश पर दस्यु गांव के जाट एक होकर सेना में शामिल होकर दिल्ली को घेर लिया, जाटों की सेना दिल्ली के निकट यमुना और आसपास के मैदानों में थी, शाही सेना दिल्ली नगर की चारदीवारी के अंदर थी, उसी समय महाराजा सूरजमल केवल 30 घुड़सवार के साथ शहर का दरवाजा तोड़कर विशाल शत्रु सेना के बीच में जाकर शत्रु के बीच युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए!
Maharaja Surajmal death – महाराजा सूरजमल का निधन
महाराजा सूरजमल की मृत्यु के बारे में इतिहासकार के अलग-अलग मत है पर जो भी हो 56 साल की उम्र में हिंदू धर्म का वीर सपूत दुनिया से विदा हो गया! उनका निधन 25 दिसम्बर 1763 को दिल्ली में हुआ।
“हिल गया गगन झुक गया जहां सारा,
लड़ता रहा स्वाभिमान के लिए पर कभीना झुका सूरज हमारा
सामान्य धारा से उठकर महाराजा सूरजमल ले एक विशाल साम्राज्य कायम किया उनके राज्य का खर्च सिर्फ 700000 साल आना था जबकि उनका राज्य दो करोड़ की आमदनी का था अपनी मृत्यु के समय उन्होंने 10 करोड़ का खजाना राजकोष में छोड़ा था उसकी सेना में प्रत्येक जाति के सैनिक लड़ते थे उनके किले को आज तक कोई नहीं जीत पाया छोटे-बड़े 80 युद्ध के विजेता थे वह वह परम स्वाभिमानी कृष्ण भक्त थे जिनको गायों से अत्यंत प्रेम था जिन्होंने अनेकों मंदिरों का निर्माण करवाया और खुद को इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया!
उनके युद्ध का ध्वज कपिध्वज था उनके मस्तक पर श्रीकृष्ण की भांति मोर पंख लगा रहता था, महाराजा सूरजमल के बाद जवाहर सिंह जटवाड़ा साम्राज्य के राजा बने!!
FAQ | अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
सूरज मल की मृत्यु कैसे हुई?
राजा सूरजमल का गोत्र क्या था?
महाराजा सूरजमल ने कितने युद्ध जीते थे?
सूरजमल के पुत्र का नाम क्या था?
राजा सूरजमल ने क्या बनवाया था?
भरतपुर का पुराना नाम क्या है?
सूरजमल के पिता जी का क्या नाम था?
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नोट– यह संपूर्ण बायोग्राफी का क्रेडिट हम महाराजा सूरजमल को देते हैं, क्योंकि ये पूरी जीवनी उन्हीं के जीवन पर आधारित है और उन्हीं के जीवन से ली गई है। उम्मीद करते हैं यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। हमें कमेंट करके बताइयेगा कि आपको यह आर्टिकल कैसा लगा?