Chittaranjan Das Biography in Hindi – आज भारत की आजादी को बीते हुए लगभग 70 वर्ष से भी अधिक हो गए है,और वही भारत को आजाद कराने वाले अनेक स्वतंत्र सेनानी ने अपना अहम योगदान तथा अपना जीवन इसके लिए न्योछावर कर दिया , उनमे से एक है, चितरंजन दास (Chittaranjan Das) जिनकी आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसलिए आज हम इन्ही के जीवन के बारे में चर्चा करेंगे। तो चलिए शुरू करते है।
चितरंजन दास कौन है ? | Who is Chittaranjan Das
चित्तरंजन दास (Chittaranjan Das) जिन्हे लोकप्रिय रूप से देशबंधु (राष्ट्र का मित्र) कहा जाता है, यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक कार्यकर्ता और वकील और अविभाजित बंगाल में स्वराज पार्टी के संस्थापक-नेता थे। इनका जन्म 5 नवंबर 1870 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। चित्तरंजन दास 1923 से पहले भारतीय राष्ट्र कांग्रेस तथा 1923 के बाद स्वराज पार्टी के मुख्य नेताओ में एक थे। इनका निधन 16 जून 1925 को 55 वर्ष की आयु में हुआ था।
चितरंजन दास का जीवन परिचय | Chittaranjan das biography in Hindi
भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक चितरंजन दास की कहानी की शुरुआत 5 नवम्बर 1870 को ढाका के विक्रमपुर नगर के तेलिरबाग़ से हुई जहाँ उनका जन्म हुआ था | परिवार में उनके पिता का नाम भुवन मोहन दास तथा माता का नाम निस्तारिणी देवी था | ब्रह्मसमाज के दुर्गामोहन दास उनके चाचा थे | उनके परिवार में सभी लोग शिक्षित थे, तथा उनके परिवार में प्रतिष्टित राजनितिक नेता ,शिक्षक एवं न्यायविद एवं न्यायधीश हुए | सन् 1890 ई. में बी.ए. पास करने के बाद चितरंजन दास आइ.सी.एस्. होने के लिए इंग्लैंड गए और सन् 1892 ई. में बैरिस्टर होकर स्वदेश लौटे। उन्होंने अलीपुर बम काण्ड में फंसे अरविन्द घोष का मुकदमा लड़ा |
चितरंजन दास का जीवन परिचय एक नजर | Chittaranjan Das Facts in Hindi
नाम | चितरंजन दास |
अन्य नाम | देशबंधु |
जन्म | 5 नवम्बर 1870 |
जन्मस्थान | कलकत्ता |
कार्य | -प्रसिद्ध वकील -स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी -कांग्रेस के सदस्य व अध्यक्ष -स्वराज्य पार्टी की स्थापना |
परिवार | पिता – भवनमोहन दास माता – निष्तारिणी देवी पत्नी – वासंती देवी |
शिक्षा | बैरिस्टर |
प्रसिद्ध | स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी |
निधन | 16 जून 1925 |
मृत्यु स्थान | दार्जिलिंग |
उम्र ( मृत्यु के समय) | 55 वर्ष की आयु में |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
चितरंजन दास का इतिहास | Chittaranjan Das History in hindi
वर्ष 1919-1922 के महात्म गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही | क्योंकि उस समय अंग्रेजो के द्वारा भारतीय लोगो पर हो रहे अपमानजनक अत्याचारों , देश की गरीबी ने उन्हें देश की आजादी के लिए उठ खड़ा होने पर मजबूर कर दिया | सबसे पहले उन्होंने विदेशी कपड़ो की बढ़ती भारत में मांग को बहिष्कार किया तथा उसके बदले स्वदेशी कपड़े अपनाने की सलाह दी | उन्होंने यूरोपियन कपड़ो को त्यागकर खादी पहनना शुरू किया | ब्रिटिशराज के विरुद्ध अपनी लड़ाई और संघर्ष को मजबूत करने के लिए उन्होंने फॉरवर्ड पत्र निकाला जिसका नाम बाद में लिबर्टी कर दिया।
जैसा की उन्होंने आंदोलन में अपनी पूरी जान लग रहे थे, वही से आन्दोलन में प्रसिद्ध होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकडकर 6 महीने की सजा दी। 1921 में अहमदाबाद कांग्रेस के वे अध्यक्ष चुने गये | ये उस समय जेल में थे अतैव इनके प्रतिनिधि के उर्प में ह्कील अजमल खां ने अध्यक्ष भार सम्भाला। इनका अध्यक्षीय वक्तव्य सरोजिनी नायडू ने पढकर सुनाया। जेल से रिहा होने के बाद वह चुप नही बैठे और जब छूटकर आए उस समय आंदोलन लगभग समाप्त हो चुका था। बाहर से आंदोलन करने के बजाए इन्होंने कांउसिलों में घुसकर भीतर से अड़ंगा लगाने की नीति की घोषणा की। कांग्रेस में ये अध्यक्ष थे लेकिन इनका यह प्रस्ताव वहाँ स्वीकार न हो सका। अंत इन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया और 1923 में स्वराज दल की स्थापना की।
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देशबंधु से सम्बोधित | Biography of Chittaranjan Das in hindi
साल 1923 में दिल्ली में हुए कांग्रेस के अतिरिक्त में उनका प्रस्ताव अंतत: स्वीकृत हो गया। प्रस्ताव के अनुसार ये बंगाल काउंसलिंग में स्वयं घुसे तथा अपने स्वराज्य दल के कई लोगो को घुसाया। बंगाल काउंसलिंग में इनका दल निर्विरोध चुना गया । इन्ही दिनों गोपीनाथ साहा नामक बंगाली ने एक अंग्रेज की हत्या कर दी।
दास तो भारत की आजादी को हमेशा के लिए आजाद कराना चाहते थे, साथ ही वे हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा साम्प्रदायिक समन्वय के सिद्धांत में विशवास रखते थे। सामान्यजनों के दुःख से द्रवित होकर उनके कल्याण के कार्य करने की वजह से ही उन्हें लोग प्यार एवं देशबन्धु देश का मित्र कहने लगे थे।
चितरंजन दास के वक्तित्व के अन्य कई पहलू भी थे | वे उच्चकोटि के राजनीतिज्ञ एवं नेता होने के साथ साथ बंगला भाषा के अच्छे कवि एवं पत्रकार भी थे। सागर संगीत , अन्तर्यामी तथा किशोर-किशोरी इनके काव्य ग्रन्थ है | सागर संगीत का उन्होंने तथा अरविन्द घोष ने मिलकर सोंग्स ऑफ़ दी सी नाम से अनुवाद किया और प्रकाशित किया |
चितरंजन दास का देहांत | Death of Chittaranjan Das in hindi
एक तरफ चितरंजन दास आजाद भारत का सपना देख रहे थे तो दूसरी ओर देशबंधु चितरंजन दास का राजनैतिक जीवन उच्च स्तरीय पर था, उस समय उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। मई 1925 में वो स्वास्थ्य में सुधार हेतु यह दार्जिलिंग चले गए, लेकिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही चला गया। इस बीच महात्मा गांधी भी खुद उनसे मिलने दार्जिलिंग आए थे। लेकिन दुर्भाग्य से 16 जून 1925 को को तेज बुखार के कारण उनका निधन हो गया।
उनकी मृत्यु के बाद महात्मा गांधी ने कहा –
देशबंधु एक महान आत्मा थे। उन्होंने एक ही सपना देखा था… आजाद भारत का सपना… उनके दिल में हिंदू और मुसलमानों के बीच कोई अंतर नहीं था।”
साथ ही चितरंजन दास के एक दुखद खबर पर प्रसिद्ध कवि रविंद्रनाथ टैगोर ने लिखा –
एनेछिले साथे करे मृत्युहीन प्रान।
मरने ताहाय तुमी करे गेले दान॥
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQ
5 नवंबर 1870 को कोलकाता में (5 November 1870 in Calcutta)
चित्तरंजन दास जी देशबंधु के नाम से जाने जाते है। (Chittaranjan Das ji is known by the name of Deshbandhu)
चित्तरंजन दास के पिता का नाम भजन मोहन दास था। (Chittaranjan Das’s father’s name was Bhajan Mohan Das.)
चित्तरंजन दास के माता का नाम निस्तारिणी देवी था। (Chittaranjan Das’s mother’s name was Nistarini Devi.)
16 जून 1925 को दार्जिलिंग में (16 June 1925 at Darjeeling)
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नोट- यह संपूर्ण बायोग्राफी का श्रय चित्तरंजन दास जी को देते हैं क्योंकि ये पूरी जीवनी उन्हीं के जीवन पर आधारित है और उन्हीं के जीवन से ली गई है। उम्मीद करते हैं यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। हमें कमेंट करके बताइयेगा कि आपको यह आर्टिकल कैसा लगा?