Chandra Shekhar Azad in Hindi – आज भारत की आजादी को बीते हुए लगभग 70 वर्ष से भी अधिक हो गए है,और वही भारत को आजाद कराने वाले अनेक स्वतंत्र सेनानी ने अपना अहम योगदान तथा अपना जीवन इसके लिए न्योछावर कर दिया , उनमे से एक है, चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) जिनकी आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसलिए आज हम इन्ही के जीवन के बारे में चर्चा करेंगे। तो चलिए शुरू करते है।
एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद जुबानी
चंद्रशेखर तिवारी जिन्हे बलराज और चंद्रशेखर आजाद के नाम से भी जाना जाता था। इनका जन्म 23 जुलाई 1906 को भाभरा गांव में हुआ था। यह एक लोकप्रिय भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) को उसके नए नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट के तहत पुनर्गठित किया। उन्होंने दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे.’ का नारा दिया।
चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय | Chandrashekhar AzadFacts In Hindi
नाम | चंद्रशेखर आजाद |
अन्य नाम | बलराज |
जन्म | 23 जुलाई 1906 |
जन्मस्थान | अलीराजपुर जिला, भाबरा गाँव |
कार्य | क्रांतिकारी कार्यकर्ता |
परिवार | पिता – सीताराम तिवारी माता – जगरानी देवी |
शिक्षा | महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय |
प्रसिद्ध | एक क्रांतिकारी के रूप में |
निधन | 27 फरवरी 1931 |
मृत्यु स्थान | चंद्रशेखर आजाद पार्क |
उम्र ( मृत्यु के समय) | 24 वर्ष |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
चंद्रशेखर आजाद के बारे | about Chandra Shekhar Azad in Hindi
निडर चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्म अलीराजपुर जिला के भाबरा गाँव में हुआ | उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) से थे | कई लोग इनका जन्म बदरका ही बताते है। चंद्रशेखर आजाद के पिता का नाम सीताराम तिवारी था , जो नौकरी छोडकर मध्यप्रदेश (भाबरा) में बस गये थे | उनेक माता का नाम जगरानी देवी था। चंद्रशेखर का बचपन खेल कूद तथा धनुष-बाण चलाना आदि तथा निशानेबाजी में बीता। |
चंद्रशेखर आजाद का इतिहास | History of Chandrashekhar Azad in hindi
साल 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ नरसंहार ने देश के नौजवानों को अंदर मानो बदले की आग ने पूरा ढांचा ही बदल दिया, चंद्रशेखर तब पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन साल 1921 में जब गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ तो उनकी पुकार पर चंद्रशेखर तथा अन्य युवा इस आन्दोलन में कूद पड़े। इस आंदोलन में युवा शामिल होना आंदोलन को गति मिली लेकिन 15 वर्ष की उम्र आन्दोलन में भाग लेने के कारण चंद्रशेखर को 15 कोड़े मारने की सजा मिली। हर चोट पर वे चिल्लाते “भारत माता की जय” उन्हें अंदर ही अंदर और मजबूत बना रह था।
जब न्यायाधीश ने उनसे नाम पूछा तू कौन हो तो उन्होंने कहा “आजाद” तब से आजाद उपनाम उनके मुख्य नाम चंद्रशेखर आजाद के साथ जुड़ गया। उन्होंने वचन लिया कि वे कभी भी ब्रिटिश पुलिस के द्वारा गिरफ्तार नही होंगे तथा एक स्वाधीन व्यक्ति के रूप में मरना पसंद करेंगे। यही से उन्होंने भारत को आजाद कराने का ठान लिया।
लेकिन यह ऐसा समय था जब असहयोग आन्दोलन को गांधीजी द्वारा वापस ले लिया गया तो देश के सब युवको को निराशा मिली | उनके अंदर बदले की आग साफ दिखाई दे रही थी, तभी आजाद ने बिस्मिल ,शचीन्द्रनाथ सान्याल तथा योगेशचन्द्र चटर्जी द्वारा संस्थापित हिदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन की सदस्यता स्वीकार कर ली | इस संगठन ने जब गाँव के अमीर घरों में डकैतियाँ डालीं तथा इसी के अंतर्गत 1925 में काकोरी रेलवे डकैती की गयी , जिससे संघठन के लिए धन जुटाया जा सके |
आज़ाद रहने की सौगंध
8 सितम्बर 1928 को सुभाष ने दिल्ली के फीरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा का आयोजन किया। इसी सभा में भगत सिंह को दल का प्रचार-प्रमुख बनाया गया। सभा में सभी ने तेय की क्रान्तिकारी दलों को अपने-अपने उद्देश्य इस नयी पार्टी में विलय कर लेने चाहिये। तभी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन” का नाम बदलकर “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन” रखा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद ने सेना-प्रमुख (कमाण्डर-इन-चीफ) की कमान अपने हाथ में ली। उनका अब एक ही लक्ष्य था “हमारी लड़ाई आखरी फैसला होने तक जारी रहेगी और वह फैसला है जीत या मौत।”
ऐसे में झांसी और ओरछा उनकी गतिविधियों के केंद्र थे यहाँ वह अक्सर जंगलो में स्वयं निशाना साधने का अभ्यास करते थे तथा अपने क्रांतिकारी सदस्यों को भी निशाना साधने का अभ्यास करवाते थे। भगतसिंह ,राजगुरु तथा सुखदेव को जब ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया तो चंद्रशेखर आजाद ने 27 फरवरी 1931 को जवाहरलाल नेहरु से मिले तथा उनसे मदद माँगी परंतु वह नाकाम रहे ।
लेकिन वही किसी और ने पुलिस्को खबर कर दी और बड़ी संख्या में पुलिस ने अल्फ्रेड पार्क को घेर लिया और गोलीबारी शुरू कर दी, चंद्रशेखर आजाद ने जवाब में पुलिस पर गोलिया चलाई। बचने के लिए कोई चारा न देख अंतिम गोली स्वयं को मार ली, अंग्रेज उन्हें पकड़ नही सके और वे अंत तक आजाद रहे। तो ये थी आजाद क्रांतिकारी की वीर गाथा।
FAQ | अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
23 जुलाई 1906 अलीराजपुर जिला, भाबरा गाँव में (23 July 1906 in Bhabra village, Alirajpur district)
अल्फ्रेड पार्क में, जिसे अब ‘आज़ाद पार्क’ कहा जाता है। (In Alfred Park, now called ‘Azad Park’)
किसी केस में एक जज के सामने पेश किया गया। वहां पर जब जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने ने कहा, ‘मेरा नाम आजाद है, यही से उनका नाम आज़ाद पद गया। (In a case presented before a judge. There, when the judge asked his name, he said, ‘My name is Azad, that’s why he got the title Azad.)
आजाद, और बलराज (Azad, and Balraj)
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नोट- यह संपूर्ण बायोग्राफी का श्रय चंद्रशेखर आजाद जी को देते हैं क्योंकि ये पूरी जीवनी उन्हीं के जीवन पर आधारित है और उन्हीं के जीवन से ली गई है। उम्मीद करते हैं यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। हमें कमेंट करके बताइयेगा कि आपको यह आर्टिकल कैसा लगा?