महादेवी वर्मा का कौन है? (Who is Mahadevi Varma)
महादेवी वर्मा एक हिन्दी भाषा की कवयित्री थीं, भारत की सबसे सर्वश्रेष्ठ कवयित्री में से के थी। इनका जन्म 26 मार्च 1907 फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। इनकी शिक्षा इन्दौर में मिशन स्कूल से शुरू हुई। महादेवी वर्मा को बचपन से ही काव्य रचना के प्रति प्रेम था जिसके चलते यह पहले ब्रजभाषा और फिर बाद में कड़ी बोली में रचनाये करने लगी। इन्होने अपने जीवन में अनेक कवितायो की रचना की जिसकी वजह से इन्हे सबसे श्रेष्ठ कवयित्री माना जाता था।
सच में महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविताये लोगो को प्रेरित करने जैसी है, उनकी कविताओं में भाव, दुःख सुख, साफ़ झलकता था, इसलिए आज हम आपको महादेवी वर्मा की सर्वश्रेष्ठ कविताये प्रस्तुत करेंगे।
1. जो तुम आ जाते एक बार (महादेवी वर्मा)
जो तुम आ जाते एक बार कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार अनुराग भरा उन्माद राग आँसू लेते वे पथ पखार जो तुम आ जाते एक बार हँस उठते पल में आर्द्र नयन धुल जाता होठों से विषाद छा जाता जीवन में बसंत लुट जाता चिर संचित विराग आँखें देतीं सर्वस्व वार जो तुम आ जाते एक बार
2. पूछता क्यों शेष कितनी रात? (महादेवी वर्मा)
पूछता क्यों शेष कितनी रात? छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू परिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात! झर गये ख्रद्योत सारे, तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे; बुझ गई पवि के हृदय में काँपकर विद्युत-शिखा रे! साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात! व्यंग्यमय है क्षितिज-घेरा प्रश्नमय हर क्षण निठुर पूछता सा परिचय बसेरा; आज उत्तर हो सभी का ज्वालवाही श्वास तेरा! छीजता है इधर तू, उस ओर बढता प्रात! प्रणय लौ की आरती ले धूम लेखा स्वर्ण-अक्षत नील-कुमकुम वारती ले मूक प्राणों में व्यथा की स्नेह-उज्जवल भारती ले मिल, अरे बढ़ रहे यदि प्रलय झंझावात। कौन भय की बात। पूछता क्यों कितनी रात?
3. मैं नीर भरी दुख की बदली (महादेवी वर्मा)
मैं नीर भरी दुख की बदली! स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा क्रन्दन में आहत विश्व हँसा नयनों में दीपक से जलते, पलकों में निर्झारिणी मचली! मेरा पग-पग संगीत भरा श्वासों से स्वप्न-पराग झरा नभ के नव रंग बुनते दुकूल छाया में मलय-बयार पली। मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल चिन्ता का भार बनी अविरल रज-कण पर जल-कण हो बरसी, नव जीवन-अंकुर बन निकली! पथ को न मलिन करता आना पथ-चिह्न न दे जाता जाना; सुधि मेरे आगन की जग में सुख की सिहरन हो अन्त खिली! विस्तृत नभ का कोई कोना मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना, इतिहास यही- उमड़ी कल थी, मिट आज चली!
4. कोयल (महादेवी वर्मा)
डाल हिलाकर आम बुलाता तब कोयल आती है। नहीं चाहिए इसको तबला, नहीं चाहिए हारमोनियम, छिप-छिपकर पत्तों में यह तो गीत नया गाती है! चिक्-चिक् मत करना रे निक्की, भौंक न रोजी रानी, गाता एक, सुना करते हैं सब तो उसकी बानी। आम लगेंगे इसीलिए यह गाती मंगल गाना, आम मिलेंगे सबको, इसको नहीं एक भी खाना। सबके सुख के लिए बेचारी उड़-उड़कर आती है, आम बुलाता है, तब कोयल काम छोड़ आती है।
5. मिटने का अधिकार (महादेवी वर्मा)
वे मुस्काते फूल, नहीं जिनको आता है मुरझाना, वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना! वे सूने से नयन,नहीं जिनमें बनते आँसू मोती, वह प्राणों की सेज,नही जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती! वे नीलम के मेघ, नहीं जिनको है घुल जाने की चाह वह अनन्त रितुराज,नहीं जिसने देखी जाने की राह! ऎसा तेरा लोक, वेदना नहीं,नहीं जिसमें अवसाद, जलना जाना नहीं, नहीं जिसने जाना मिटने का स्वाद! क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार रहने दो हे देव! अरे यह मेरे मिटने क अधिकार!
6. किसी का दीप निष्ठुर हूँ (महादेवी वर्मा)
शलभ मैं शपमय वर हूँ! किसी का दीप निष्ठुर हूँ! ताज है जलती शिखा; चिनगारियाँ शृंगारमाला; ज्वाल अक्षय कोष सी अंगार मेरी रंगशाला ; नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ! नयन में रह किन्तु जलती पुतलियाँ आगार होंगी; प्राण में कैसे बसाऊँ कठिन अग्नि समाधि होगी; फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मन्दिर हूँ! हो रहे झर कर दृगों से अग्नि-कण भी क्षार शीतल; पिघलते उर से निकल निश्वास बनते धूम श्यामल; एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ!
7. बया हमारी चिड़िया रानी (महादेवी वर्मा)
बया हमारी चिड़िया रानी! तिनके लाकर महल बनाती, ऊँची डाली पर लटकाती, खेतों से फिर दाना लाती, नदियों से भर लाती पानी। तुझको दूर न जाने देंगे, दानों से आँगन भर देंगे, और हौज़ में भर देंगे हम- मीठा-मीठा ठंडा पानी। फिर अंडे सेयेगी तू जब, निकलेंगे नन्हे बच्चे तब, हम आकर बारी-बारी से कर लेंगे उनकी निगरानी। फिर जब उनके पर निकलेंगे, उड़ जाएँगे बया बनेंगे, हम तब तेरे पास रहेंगे, तू मत रोना चिड़िया रानी
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